Raigarh Gharana Kathak
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-बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रायगढ़ नरेश संगीत सम्राट राजा चक्रधर सिंह के शासन काल में 'रायगढ़ घराना कथक' का उदय हुआ। आपके शासन काल में तत्कालील समय के सभी संगीताचार्यों का निरन्तर आना-जाना रायगढ़ दरबार में बना रहा। देश के उच्च कोटि के गायक, वादक और नर्तकों को आपके दरबार में आश्रय प्राप्त था। राजा साहब को कथक नृत्य से गहरा लगाव था। कथक को अपना ईष्ट मानकर निरन्तर उपासना करते रहे। आप कथक नृत्य के सर्वांगीण विकास हेतु आजीवन सृजनशील रहे। आपने कथक नृत्य के शास्त्रीय और प्रायोगिक पक्ष हेतु वृहद ग्रन्थों की रचनाएँ की, जिनमें 'नर्तनसर्वस्वम्' (कथक नृत्य के शास्त्रीय एवं प्रायोगिक विधान से सम्बन्धित) और ' 'मुरजपर्णपुष्पाकर' (पखावज के दुर्लभ परणों का कोष विशेष उल्लेखनीय है)। रायगढ़ घराने का नर्तन इन्हीं दोनों ग्रन्थों की विषय वस्तुओं पर आधारित है। इसके अलावा राजा साहब ने 'तालतोयनिधि' (ताल पक्ष हेतु) रागरत्नमंजूषा (गायन हेतु) और 'तालबलपुष्पाकर' (तबला हेतु) आदि ग्रन्थों का सृजन कार्य भी किया। कथक नृत्य के भाव-पक्ष को सरस और हृदयगामी बनाने हेतु सैंकड़ों भाव-गीतों की रचनाएँ भी कीं। जिनमें 'अष्टनायिका' और 'नवरस' भावगीत हिन्दी काव्य जगत की अति उत्कृष्ट रचनाएँ हैं। राजा साहब ने जहाँ एक ओर कथक के शास्त्रीय पक्ष हेतु ग्रन्थों का सृजन किया वहीं दूसरी ओर प्रायोगिक पक्ष हेतु नर्तको को भी तैयार किया। इनमें पं. कार्तिकराम, पं. कल्याण दास महत, पं. फिरतु महाराज और पं. बर्मन लाल प्रमुख हैं। वर्तमान में इन नृत्य गुरुओं के वंशज और समृद्ध शिष्य परम्परा इस घराने के प्रचार-प्रसार में सतत गतिशील है।
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